ढूंढ़ना मुझे

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ढूंढ़ना मुझे

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बावड़ी के किनारे रखे पत्‍थरों के नीचे
पीपल को बांधी गई डोर से कुछ दूर
खिलते गेंदे की कली में
झरने से फूटते पानी के ठीक पीछे
या उस कांटेदार पौधे में जिसका दूध
हाथों-पैरों के मस्‍से ठीक करता है
ढूंढ़ना मुझे
पहाड़ी पर खड़े हो कर गाए
किसी गीत के बोल के अंतिम हिस्‍से में
मैं मिलूंगा तुम्‍हें
अधूरे छूटे किसी लोकगीत की संभावना में
जंतर मंतर पर भी रहूंगा मैं
उन गुहारों में जो कुछ बदलना चाहती हैं
मुझे पाना उन चीखों में
जो बहुत बार अनसुनी रह जाती हैं
किसी संकरे पुल पर
पार से किसी के इंतजार में
शांत बैठा दिख सकूंगा मैं

जरूरी हो तो मुझे खोजना
उस पत्‍थर में जो टेढ़ा कर देता है

पहाड़ काटने में मसरूफ

किसी जेसीबी के ब्‍लेड को

जो इस बार नहीं है कहीं

बस उसी सबके आसपास देखना मुझे।

-नवनीत शर्मा

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