किसी के ग़म की मार ने बड़ी हसीन मार की कि चोट खा के गा रही है रूह मुझ सितार की ले देख बन गई न आज ! खाई इक दरार की उजड़ गई वो वादियां जो दिल में थी चिनार की बिछड़ के भी मैं उससे खिलखिला रहा हूं आज भी कि रौनक़ें बनी…
जज्बों की दुनिया
किसी के ग़म की मार ने बड़ी हसीन मार की कि चोट खा के गा रही है रूह मुझ सितार की ले देख बन गई न आज ! खाई इक दरार की उजड़ गई वो वादियां जो दिल में थी चिनार की बिछड़ के भी मैं उससे खिलखिला रहा हूं आज भी कि रौनक़ें बनी…